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अच्छी बातें कहना आसान लेकिन करना मुस्किल. क्या कभी हम लोगो ने सोचा है शायद नहीं ! तभी तो हम अक्सर कहते कहते नज़र आ जाते है कुछ भी कर लो इस देश का , समाज के लोगो का भला नहीं हो सकता , भ्रस्टाचार ख़त्म नहीं हो सकता है . मै पूछता हूँ क्या कभी अपने ऐसा किया है पुरे मनोयोग से , शायद नहीं ! हम सुनी सुनायी बातों पर यक़ीन कर अपने अंदर के इंसान को या तो दबा देते है या मार ही देते हैं . कौन उठाएगा परेशानी , कौन मेरा साथ देगा, क्या हमी बैठे हैं इसे सुधारने को , मेरा क्या किसी तरीके से काट लेगे , आदि-आदि विचार हमारे मन के अंदर आते है या ला दिए जाते हैं
ऐसी मानसिकता ने ही हमे तथा समाज को इस रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया है तब हम क्या करे
अपने परिवार के सदस्यों के साथ विचारों को साझा कर ले
अपने बच्चों के साथ दिन के कुछ सार्थक घंटे गुज़ार ले
अपने कार्यस्थल पर अपनी कार्य छमता के मुताबिक काम कर ले
अपने आप को ज़यादा न कोसने कि कसम खा ले
अपने लोभ पर संवरण करते हुए प्रकृति और तकनीक का सदुपयोग करते हुए जीवन यापन कर ले
मुझे नहीं लगता इससे ज़यादा कि ज़रूरत है हम इंसानों
इस भाव को समाप्त करवा दे कर भला तो हो भाला
सदैव यह सत्य है
“कर भला तो हो भला”
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