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कैसे जागे हिंदुस्तान

SITU
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ज़्यादातर भारतीय इन दिनों ह्रदय से दुखी मालूम पड़ते हैं की जाने क्या हो गया अपने समाज को ?
समाचारों पर ध्यान दे तो जिधर देखो उधर ही बलात्कार , हत्या, असामाजिक घटनाओं की मानो बाढ़ सी आ गयी है ! समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने को असुरक्षित तथा छला हुआ महसूस कर रहा है , क्या यही सच्चाई है ?
यदि आप देखे आप अपने बगल में तो सिर्फ यही सच्चाई नहीं है , लोग आज भी एक दुसरे को सहयोग करते दिख ही जाते है चाहे वह बीमारी का वक़्त हो ,शादी विवाह का ,आदि -आदि
तब यह सारी बातें क्यों मीडिया के माध्यम से दिखलाई जा रही है यह सारी बातें समाज के लोगो को सोची समझी रणनीति के तहत दिखलाई जा रही है . समाज में हताशा का भाव आ जाये और स्वाभिमान खत्म हो जाये .उसके बाद हम भारतीयों से वह सारी बातें मनवा ली जाएँ
उपभोक्तावाद ने हमारी सामाजिक ताना-बाना को नष्ट करने के बाद हमारी मानसिक स्थिति को अन्धानुकरण वाला बना दिया है
विज्ञापन तथा प्रसार तंत्र में गज़ब की वशीकरण तथा सम्मोहिनी शक्ति होती है जो हमारे मानसिकता को बदल कर दिग्ब्र्हमित करती है.
हम विकास के उद्देश्य को छोड़ कर झूटी तुष्टि के लिए तात्कालिक लक्ष्यों का पीछा कर रहे हैं . इज्ज़त की अन्धीप्रतिस्पर्धा में मौलिकता खो गयी है, नैतिकता के मानदंड ढीले पड़ गए,मर्यादाएं छुट गयीं . लोग अपनी वास्तविक ख़ुशी के लिए कार्य न कर झूटी शान तथा धन के लिए कार्य कर रहे है . स्वार्थ ,परमार्थ पर भारी पड़ रही है
इन सभी कारणों से” बदहाल हताश भारत ” का निर्माण करवाया जा रहा है ताकि हम मानसिक दासता स्वीकार कर विदेशियों की सारी बातें उनकी ही शर्तों पर मान ले .
वह हमे जैसा बनाना चाहतें वैसे ही बन जाये

तब हम क्या करे हाथ पर हाथ dhare बैठे रहे कोई आएगा और एक ही दिन में जादू से ठीक कर देगा. ऐसा नहीं है हमारे नीति निर्माताओं को अपने मौलिक सोच को जागृत कर देश हित में कार्यों को लागु करवाएं
समाज के प्रबुद्ध तथा जागरूक लोगो को सिर्फ बुरे कार्यों की चर्चा न कर ,अच्छे कार्यों की बातें भी साझा करे ताकि समाज को पता चले की प्रयास जारी है ,हिम्मत हारने की ज़रूरत नहीं
हम सिर्फ शब्दों से परिवार , समाज तथा देश की सेवा के बारे में न सोचे वरन कर्तव्यों का उचित निर्वहन कर अपने पास के माहौल को उर्जावान बनायें . जिस प्रकार नकारात्मक सोच वाले तर्क देते है की जब तक किसी इंसान को मौका नहीं मिलता है तब तक ही वह इमानदार बना रहता है
मेरा कहना है की सकारात्मक सोच वाले को भी जहाँ और जितना भी मौका मिले ,वह सद्प्रयास करे तो समाजहित तथा देशहित निश्चित रूप से होगा
खास कर मीडिया वालों को;
इस दिशा में” दैनिक जागरण ” का” जागरण पाठशाला” आदि सार्थक प्रयास है

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